Tuesday 15 January 2013

आज फिर हँसी में इक ग़म को छिपा लिया...

It is everyday that we come across a lot of less privileged people around us. But it is rare that we take some time out to be with them and help them to rise from the place they are stuck in. I went to meet a few such kids today...sat with them, talked and played with them... and it brought so much of relief to me. But I realized it was impossible for me to not to think about them after leaving from there. And so, I couldn't help but write what I observed when I was with them. Such strong people they are, fighting everyday for survival, yet making it seem as though it is nothing so difficult. We reach out to some, but still there are many who don't receive our support. If you can feel what I am trying to convey through this piece of writing, then please try and contribute towards a better future for these people, in whatever possible way you can. Every effort, no matter how small it is, can be a huge step in building a better tomorrow.


आज फिर हँसी में इक ग़म को छिपा लिया,
बिन आहट चलने वाली धड़कन को साज़ का नाम दिया,
परछाइयों में जीने वाली आँखों को रौशनी कह दिया,
और दुनिया को फिर एक मुखौटे में ख़ुद से मिलवा दिया...

कितने  मुखौटे हैं यहाँ सब के
हर मुखौटे का अपना सच,
कितनी चोटें हैं लगीं हर दिल को
हर चोट का अपना दर्द,
इन  मुखौटों को, इन चोटों को
आज फिर खुद में समां लिया
आज फिर हँसी में इक ग़म को छिपा लिया...

हर दिन की सुबह  नयी
हर सुबह की शाम नयी
इन आँखों में फिर भी
न सुबह नयी, न शाम नयी
ख़ुशी ने दस्तक दी भी कभी तोह लगा यूं
ज़िन्दगी छीन न ले यह भी मुस्कान कहीं,
आज फिर दुनिया को एक झूठ से रूबरू करा दिया
आज फिर हंसी में इक ग़म को छिपा लिया...

चलते हैं इस दुनिया में
जैसे हैं राजा सारी ज़मीन के
कोई झाँक के देखे अन्दर तो जाने
हैं मुश्किल कितने अंदाज़ ये,
कि न है कुछ, और न उसे खोने का डर
फिर भी है दुनिया की हर रीत की कद्र,
ठण्ड में तारों की रजाई तले पूरी रात बिता दी
और सूरज की धूप में पत्तों की छाँव बना ली,
आज फिर कुदरत को अपना ग़ुलाम बना लिया
आज फिर हंसी में इक ग़म को छिपा लिया...

न घर है कोई न खून के रिश्ते कोई
पर फिर भी परिवार में हैं लोग कई
हैं एक जैसे सब, बस सबके मुखौटे कुछ अलग,
हर मुखौटे के पीछे है एक टीस अलग
कल मायने रखता नहीं, है आज जीना चुनौती नयी,
जीत पाना पत्थर दिल वालों  की इस दुनिया में
बस है हर दिन की कहानी यही...
आज इस कहानी को लफ़्ज़ों में ढाल दिया
आज फिर हंसी में इक ग़म को छिपा लिया...


2 comments:

  1. Hockey girl, I must say...... What you wrote above is commendable. It feels like, you spoke your heart out for such children. Even I was engaged in similar activities sometime back, and I went straight back to those days spent with children.

    Let me give my views in my own way:

    हैं इनके रास्ते कठिन, पर नामुमकिन नहीं
    हैं बड़े ही मासूम ये, हर बुराई से अंजान
    गर हाथ मिलाय हर कोई, तोह इन्की राह होगी और आसान
    हर मुखौटे की हे अपनी अलग कहानी, जिसे अब इन्हें साथ मिलकर हे बितानी

    आज इक दोस्त ने नया सवेरा दिखा दिया
    ज़िन्दगी की एक सच्चाई से रूबरू करा दिया
    हमारी ख़ुशी इन बच्चों की हंसी के आगे कुछ नहीं
    हैं असली राजा यें ही, सच करदेंगे ये कहावत सब सही

    आज उसी दोस्त की नजरों से उन मुखौटो को देख लिया
    दिल की गहराइयों में सभी को बसा लिया
    आज इक तस्वीर को शब्दों में ढ़ाल दिया
    आज फिर हंसी में एक ग़म को छिपा लिया

    आज इक तस्वीर को शब्दों में ढ़ाल दिया
    आज फिर हंसी में एक ग़म को छिपा लिया...

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  2. This is one of your best works.

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